शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

Shining India and General Railway Bogie

भारतीय रेल सेवा
शाईनिंग इडिंया और जनरल डब्बे के सामान्य आदमी।

भारतीय रेल एशिया की सबसे बड़ी रेल नेटवर्क है जिसमें लाखों कर्मचारी कार्य करते हैं। यातायात का सबसे बड साधन है। यह देश की जीवन धारा है। यह पूरे देश को जोड कर रखती है। रेलवें ने दूरियों को खत्म कर दिया है।

आम व्यक्ति के लिए भारतीय रेल आवहगमन का साधन है। भारत जैसे विकाशशील देश के लिये वाकई बड शर्म की बात है की यहाँ का आम आदमी आज रेल का लम्बा सफर नही कर सकता। आजादी मिले ५० वर्ष सेभी ज्यादा बीत चुके हैं किन्तु अमीरी-गरीबी का फर्क आज भी नहीं मिटा है। हमारी आधी से बहुत ज्यादा जनता आज भी गरीबी रेखा के नीचे रहती है। भारतीय रेलवे ने समय के साथ साथ अपना विकाश तो जारी रखा किन्तु आम लोगों से दूर होती गई एवं खास लोगों की रेल बन गई।

आम लोग वह होते हैं जो ज्यादा लम्बा सफर नही कर सकते, जिनके सफर की तिथी या तारीख निश्चित नही होती।जो महिने भर पहले अपनी यात्रा का कार्यक्रम नहीं बना सकते हैं। जब कभी तत्काल में लंबी दूरी का सफर करना पड़ता हो, आरक्षण न मिल पाए तो यात्रा शुरू से आखरी तक दुखदायी हो जाती है।

कुछ वर्ष पहले तक दिन मे स्लीपर या शयनयान में साधारण दर्जे के यात्री खड़े होकर यात्रा कर सकते थे किन्तु बाद में इसे बंद कर दिया गया। यह ठीक भी हुआ क्योंकि जो आरक्षण करके यात्रा कर रहें हो उनका हक क्यों छीनना। समय के साथ आम आदमियों की संखया तो बढती रही किन्तु रेलवे ने आम डब्बों (जनरल डब्बों) की संख्या यथावत रखी। यह अत्यंत ही शर्म की बात है कि एक ओर तो लोग आराम से सो कर यात्रा करते हैं एवं दूसरी तरफ जनरल डब्बे में आम लोग जानवरों की तरह ही नहीं, बल्कि कीड़े -मकोड़े या इल्लियों की तरह एक दूसरे से चिपककर यात्रा करते हैं। एसा प्रतीत होता है कि जैसे सभी ने मिलकर निर्लज्जता की हदें पार कर दी हों। जो स्थिती पढने में इतती शर्मनाक लगती है उस स्थिती में लाखों-करोडो लोग रोजाना जनरल डब्बे में मजबूरन यात्रा करते हैं। आम आदमी नहाने के बाद तौलिए से अपना शरीर भी उस प्रकार से नही पोंछता है जिस जिस प्रकारसे लोग मजबूरीवश गौरवशाली भारतीय रेलवे के जनरल डब्बें में एक दूसरे से चिपककर यात्रा करते हैं जिनमें पुरुष-महिला, बच्चे-जवान एवं बुजुर्ग भी शामिल होते हैं।


ऐसा नही है कि साधारण दर्जे (जनरल डब्बे) के यात्री शयनयान में यात्रा करनें में सक्षम नहीं होते बल्कि वह रेलवे के कानूनों के तहत शयनयान में यात्रा नही कर सकते। क्योंकि शयनयान में यात्रा करने के लिये उन्हें बहुत दिनों पहले नियत समय, दिन नियन गाड़ी का आरक्षण करवाना पड़ता है। आरक्षण भी कम से कम १०० से २००किमी की यात्रा पर ही मिलता है। ऐसे में कम दूरी का सफर करने वाले यात्री जिनके यात्रा का समय तारीखनिश्चित नही होती है वह साधारण दर्जे में यात्रा करता है।

२० से ३० डिब्बों वाली रेलगाड़ी में साधारण दर्जे के कुल से डब्बे होते हैं जिसमें डब्बा महिलाओं के लियेआरक्षित होता है। तीन डब्बों में से अक्सर एक डब्बा आर्मी / सेना के जवानों के लिये होता है (अनाधिकारिक रूपसे) इस डब्बे में टी. टी. एवं रेलवे पुलिस के जवान भी नही घुसते ऐसे में आम इज्जतदार आदमी घुसना तो दूर झाँकने की भी हिम्मत नही करता। बाकी बचे केवल दो डिब्बे आम आदमी के लिये। इस एक-एक डब्बे में २०० से४०० व्यक्ति सफर करेंगे तो वे कुत्ते-बिल्ली, कीड़े मकोड़े या इल्लियों की ही तरह सफर करेंगें। सबसे ज्यादा दिक्कत आती है महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों को। स्वस्थ आदमी तो एक टांग पर खड़ा होकर यात्रा कर सकता है किन्तु महिलाऐं एवं बच्चे ऐसा नही कर सकतें।


हम लोग बस में तो /2 (डेड़) फिट की जगह में बैठकर १५ से २० घण्टे तक आसानी से यात्रा कर सकते हैंकिन्तु रेल में से घण्टे की भी यात्रा के लिऐ हमें फिट की जगह की जरूरत पड़ती है। रेलवे में रिजर्वेशन मिलगया तो जन्नत मिल जाती है किन्तु यदि जनरल में मजबूरीवश जाना पड़े तो यह एक दुखद अहसास बन जाता है। रेलवे में रिजर्वेशन की आवश्यकता ही इसलिए पड़ती है क्योंकि जनरल डब्बें में बैठने तो क्या दो पैर रखने को१०-१० इंच की जगह भी नही मिल पाती है।


कितनी हास्यास्पद बात है कि २०-३० डिब्बे की गाड़ी में आम आदमी के लिये केवल एक डिब्बा। ऐसे में भारतीय रेल जन जन की रेल रही कहाँ यह तो विशिष्ट लोगों की रेल बन गई है जो महंगी टिकट खरीद सकते हैं, पूर्व में निर्धारित तिथि पर यात्रा कर सकतें हैं, या एक सीट के लिये २००-३०० रू घूस देकर तुरंत आरक्षण प्राप्त कर सकतेहैं। साधारण दर्जे के एक डब्बे में जितने लोग घुस सकते हैं हिम्मत करके उतने घुस जाते हैं बाकी अगली गाड़ी का इन्तजार हैं। जिनको जाना तो जरूरी होता है उपर की जेबों में १००-२०० रू डालकर शयनयान या आरक्षित डब्बे मेंघुस जाते हैं ताकि टी.टी. के आने पर घूस देकर कम से कम थोडा आराम से खड़े होकर तो जा सकते हैं। ऐसीपरिस्थिती में आम आदमी जो घूस दे सके वह क्या करेगा।

शासन द्वारा दुपहिया वाहनों के लिये नियम है कि दो व्यक्ति से से ज्यादा लोग नही बैठ सकते, बसों में निर्धारित संख्या से ज्यादा यात्री सफर नही कर सकते, खड़े होकर यात्रा करना मना है, उल्लंघन करने पर दुपहिया चालक एवं बस के परिचालक को जुर्माना भरना पड़ता है। पर भारतीय रेल में सामान्य कोच या डिब्बे के लिये कोई नियम नही है। आरक्षित कोच में तो निर्धारित व्यक्ति ही यात्रा कर सकते हैं वह भी आराम से सोकर किन्तु अनारक्षित यासामान्य डब्बे में बैठने के अंक या नम्बर सीटों पर अंकित होने के बाद भी लोग भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे के उपर चढकर यात्रा करतें हैं। आखिर करे भी तो क्या कुल एक या दो ढब्बे २५ से ३० ढिब्बों की गाड़ी में। रेलवे पैसेन्जर गाडियां चलाती है किन्तु जिन्हें लम्बी यात्रा करनी होती हो वह क्या करें। पैसेन्जर गाडियां हर स्टेशन पर रुकती है घण्टों लेट चलती हैं।


रेलवे को चाहिए कि प्रत्येक रेल में कुल डब्बों के आधे या कम से कम से १० अनारक्षित (जनरल) डिब्बे लगाये ताकी जनरल डब्बें मे जिन्हें जगह नहीं मिल सके वो कम से कम आराम से खड़े होकर तो यात्रा कर सकें।

भारत की आम जनता रोटी पानी के जुगाड में ही व्यस्त रहती है। वह इस बारे में सिर्फ बाते करके अपना अफसोस जाहिर कर सकती है। छात्र वर्ग इसमें आंदोलन कभी कर नही सकता है क्योंकि छात्र वर्ग आंदोलन हमेंशा राजनीति से प्रेरित होता है और यह मामला राजनीति से संबंधित नही है। राजनेता कभी इस मामले को उठाऐंगे नही क्योंकि वे हमेंशा वातानूकूलित (.सी.) डब्बें में यात्रा करते हैं। अगर वे खुद के खर्चे पर भी यात्रा कर रहें है तो भी वातानूकूलित (.सी.) डब्बें में ही यात्रा करते हैं क्योंकि लगभग सभी राजनेता आर्थिक रूप से काफी सक्षम होते हैं।


एसी परिस्थिती में हमारे बुद्धिजीवी वर्ग का यह कर्तव्य बनता है कि वे समाज में राष्ट्र में इस स्थिती पर राष्ट्रीय बहस कराएँ। भारतीय रेलवे को जन जन के आवहगमन का साधन बनना चाहिए। मानवाधिकार आयोग को चाहिए की वह आगे आकर इस संदर्भ में भारतीय रेलवे एंव भारत सरकार को दिशा निर्देश जारी करे। मैंने कुछ वर्षपहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस संदर्भ में लेख लिखा था जहां से मेरे पास पत्र आया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।


रेलवे में नए प्रयोग हो जैसे डबल डेकर बस वैसे ही डबल सीटर कोच, नए इन्जनों का विकाश हो जो ३० से ५० डब्बे खींच सकें। भ्रष्टाचार को कैसे कम किया जा सकता है। ट्रेक पर ज्यादा से ज्यादा रेल चल सकें, कम से कम दुर्घटना हों।

जब तक भारतीय रेलवे सा
इटैलिकमान्य जनता को रेलों में बराबरी का हक नही देती है वह ''भारतीय रलवे'' की अपेक्षा विशिष्ट लोगों की भारतीय रेल'' कहलायेगी। ''

( सुनील पटेल )
९४०६९३०४००